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संविधान और मौलिक अधिकार से जुड़े फैसले

भारत में कई महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (court judgments) दिए गए हैं जिन्होंने संविधान, कानून और समाज पर गहरा प्रभाव डाला है। यहाँ कुछ लोकप्रिय और ऐतिहासिक कोर्ट जजमेंट दिए गए हैं: संविधान और मौलिक अधिकार से जुड़े फैसले केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure Doctrine) की अवधारणा दी, जिससे यह तय हुआ कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन इसके मूल ढांचे को नहीं बदल सकती। गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों में संसद संशोधन नहीं कर सकती । हालांकि, बाद में केशवानंद भारती केस में इसे आंशिक रूप से पलट दिया गया। मेनका गांधी बनाम भारत सरकार (1978) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) केवल कानूनी प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण प्रक्रिया पर भी आधारित होना चाहिए । इस फैसले ने नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) की अवधारणा को मजबूत किया। शाहबानो केस (Mohd. Ahmed Khan v. Shah Bano Begum, 1985) इस केस में सुप्रीम...