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एक मुकदमा जिसने सामाजिक न्याय की दिशा बदली: चंपकम दोरायराजन केस

चंपकम दोरायराजन मामला: न्याय की लड़ाई और संविधान का संतुलन एक संघर्ष की शुरुआत 1950 का दशक, जब भारत एक नवगठित गणराज्य के रूप में अपनी पहचान बना रहा था। संविधान लागू हो चुका था, लेकिन सामाजिक न्याय और मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन की चुनौती सामने थी। मद्रास (अब तमिलनाडु) की रहने वाली चंपकम दोरायराजन , जो एक ब्राह्मण महिला थीं, का सपना था कि वह मेडिकल की पढ़ाई करें और समाज में अपना योगदान दें। लेकिन जब उन्होंने सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन किया, तो उन्हें यह कहकर मना कर दिया गया कि उनकी जाति के लिए निर्धारित सीटें भर चुकी हैं। यह उनके लिए चौंकाने वाला था। राज्य सरकार ने सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए आरक्षण नीति लागू की थी, जिसमें कुछ जातियों को प्राथमिकता दी गई थी। For Representation एक संवैधानिक लड़ाई चंपकम को लगा कि यह नीति उनके मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया। मामला जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा। सवाल यह था—क्या सरकार की यह आरक्षण नीति संविधान के अनुच्छेद 15(1) और 29(2) का उल्लंघन ...