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न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका

⚖️ न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका: हालिया टकराव और उपराष्ट्रपति की टिप्पणी पर गहन विश्लेषण 🔍 प्रस्तावना भारत के लोकतंत्र की मूल आत्मा है – संविधान द्वारा निर्धारित शक्तियों का पृथक्करण । न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका – तीनों स्तंभों की सीमाएं स्पष्ट हैं, फिर भी समय-समय पर इनके बीच टकराव की स्थितियाँ उत्पन्न होती रही हैं। हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि "न्यायपालिका राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती" । यह बयान भारतीय संविधान की कार्यपालिका-न्यायपालिका संतुलन पर एक नई बहस को जन्म देता है। 🏛️ विवाद का मूल कारण: राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पृष्ठभूमि में था एक संवैधानिक विवाद – तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा गया था , लेकिन उन पर निर्णय लंबित था। इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दिया , ताकि विधायी प्रक्रिया बाधित न हो। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करत...

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025: सुधार और दूरगामी प्रभाव

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 भारत में कानूनी परिदृश्य अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 की शुरुआत के साथ एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के लिए तैयार है। यह प्रस्तावित कानून जवाबदेही, नियामक पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, साथ ही भारत की कानूनी प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने का प्रयास करता है। जैसे-जैसे यह विधेयक विधायी चर्चा से गुजरेगा, कानूनी पेशेवरों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए इसकी प्रमुख धाराओं और संभावित प्रभावों का विश्लेषण करना आवश्यक है।