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अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025: सुधार और दूरगामी प्रभाव

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025

भारत में कानूनी परिदृश्य अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 की शुरुआत के साथ एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के लिए तैयार है। यह प्रस्तावित कानून जवाबदेही, नियामक पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, साथ ही भारत की कानूनी प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने का प्रयास करता है। जैसे-जैसे यह विधेयक विधायी चर्चा से गुजरेगा, कानूनी पेशेवरों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए इसकी प्रमुख धाराओं और संभावित प्रभावों का विश्लेषण करना आवश्यक है।



विधेयक की प्रमुख प्रावधान

1. कानूनी पेशेवरों की परिभाषा का विस्तार

इस विधेयक में "कानूनी पेशेवर" (Legal Practitioner) की परिभाषा का विस्तार किया गया है। पहले केवल वे अधिवक्ता जो अदालतों में प्रैक्टिस करते थे, इस श्रेणी में आते थे। लेकिन नया विधेयक कॉरपोरेट अधिवक्ताओं, इन-हाउस काउंसल, कानूनी सलाहकारों और कंसल्टेंट्स को भी इस दायरे में लाता है। इस बदलाव से यह सुनिश्चित होगा कि सभी कानूनी पेशेवरों के लिए समान आचार संहिता और नैतिक मानदंड लागू हों।

📜 धारा 2(1)(a) - अधिवक्ता की परिभाषा

2. बार काउंसिल में अनिवार्य पंजीकरण

विधेयक के अनुसार, सभी अधिवक्ताओं को अपनी प्राथमिक कार्यस्थल के अनुसार मान्यता प्राप्त बार काउंसिल में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। साथ ही, अधिवक्ताओं को केवल एक बार काउंसिल में मतदान करने का अधिकार मिलेगा, जिससे पेशेवर संगठनों में चुनावी गड़बड़ियों को रोका जा सके।

📜 धारा 17 - राज्य बार काउंसिल में नामांकन

3. अधिवक्ताओं की हड़ताल और अदालत बहिष्कार पर प्रतिबंध

इस विधेयक का सबसे विवादास्पद प्रावधान हड़ताल और अदालत बहिष्कार पर पूर्ण प्रतिबंध है। इसके तहत, यदि कोई अधिवक्ता न्यायिक कार्यवाही में बाधा डालता है, तो इसे व्यावसायिक कदाचार माना जाएगा और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, प्रतीकात्मक विरोध की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि इससे न्यायिक कार्य प्रभावित न हो।

📜 धारा 35 - अधिवक्ताओं के आचरण पर अनुशासनात्मक कार्रवाई

हड़ताल पर प्रतिबंध के नकारात्मक प्रभाव

हालांकि इस प्रावधान का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को सुचारू रखना है, लेकिन इसके कुछ गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं:

  • अधिवक्ताओं के अधिकारों का हनन – हड़ताल एक लोकतांत्रिक विरोध का माध्यम रहा है, इसे पूरी तरह से रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने जैसा है।
  • सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति का ह्रास – अधिवक्ता कई बार कानूनी सुधारों, प्रशासनिक समस्याओं या अन्य मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए हड़ताल करते हैं। बिना इस विकल्प के, उनका प्रभाव कम हो सकता है।
  • वैकल्पिक विरोध तरीकों का उदय – यदि हड़ताल प्रतिबंधित होती है, तो अधिवक्ता सामूहिक अवकाश, धीमे काम करने या अन्य तरीकों का सहारा ले सकते हैं, जिससे न्यायिक व्यवस्था फिर भी बाधित हो सकती है।
  • न्यायिक जवाबदेही पर प्रभाव – कई बार न्यायिक भ्रष्टाचार या प्रशासनिक असफलताओं के खिलाफ अधिवक्ता हड़ताल करते हैं। यदि विरोध का यह तरीका समाप्त हो जाता है, तो न्यायिक तंत्र की जवाबदेही प्रभावित हो सकती है।


📜 धारा 7(1)(b) - बार काउंसिल की शक्तियाँ और कार्य

4. बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) में सरकार की भागीदारी

इस विधेयक के तहत केंद्र सरकार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) में तीन सदस्यों को नामांकित करने का अधिकार मिलेगा। सरकार का तर्क है कि इससे बेहतर शासन और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। हालांकि, कई विशेषज्ञ इसे सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं, जो कानूनी पेशे की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है।

📜 धारा 10A - बार काउंसिल में नामांकन

5. विदेशी कानून कंपनियों और अधिवक्ताओं का नियमन

विधेयक विदेशी कानूनी कंपनियों और विदेशी योग्यता प्राप्त अधिवक्ताओं को भारत में नियंत्रित रूप से कार्य करने की अनुमति देता है। यह नीति भारत के कानूनी क्षेत्र को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने में मदद करेगी, लेकिन भारतीय अधिवक्ताओं के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ने का खतरा भी हो सकता है।

📜 धारा 47 - विदेशी अधिवक्ताओं का प्रवेश और विनियमन

6. नैतिक उल्लंघन के लिए कड़े दंड

इस विधेयक में अधिवक्ताओं के व्यावसायिक आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। यदि किसी अधिवक्ता को तीन वर्ष या उससे अधिक की कैद की सजा होती है, तो उसे स्वचालित रूप से बार काउंसिल की सूची से हटा दिया जाएगा। बिना लाइसेंस के वकालत करने पर ₹2 लाख तक का जुर्माना या एक वर्ष की सजा का प्रावधान भी जोड़ा गया है।

📜 धारा 45 - अवैध प्रैक्टिस के लिए दंड

7. अधिवक्ताओं की शैक्षिक योग्यता की अनिवार्य जांच

फर्जी डिग्री और फर्जी अधिवक्ताओं की समस्या को रोकने के लिए नियमित आधार पर अधिवक्ताओं की शैक्षिक योग्यता और उनके कार्यस्थल का सत्यापन अनिवार्य किया गया है। यह प्रावधान कानूनी पेशे में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाएगा।

📜 धारा 26 - अधिवक्ताओं की पात्रता की जांच

सरकार को प्रतिक्रिया कैसे दें?

सरकार ने इस विधेयक पर अधिवक्ताओं, शिक्षाविदों और आम जनता से सुझाव आमंत्रित किए हैं। यदि आप इस पर अपनी राय देना चाहते हैं, तो अपने सुझाव निम्नलिखित ईमेल पर भेज सकते हैं: 📩 dhruvakumar.1973@gov.in और impcell-dla@nic.in

निष्कर्ष

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 भारत की कानूनी प्रणाली को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन इसका क्रियान्वयन स्वायत्तता और नियमन के बीच संतुलन बनाए रखते हुए किया जाना चाहिए।

आपका इस विधेयक पर क्या विचार है? हमें अपनी राय बताएं और इस महत्वपूर्ण चर्चा का हिस्सा बनें!


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