उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण अनिवार्य: जानिए नए नियम, प्रक्रिया और प्रभाव
🔹 उत्तराखंड में ऐतिहासिक कानूनी बदलाव
उत्तराखंड ने भारत में पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप के लिए अनिवार्य पंजीकरण का नियम लागू किया है। यह कानून राज्य की समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत लाया गया है, जिसका उद्देश्य जोड़ों को कानूनी सुरक्षा देना, धोखाधड़ी रोकना और महिलाओं एवं बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना है।
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप कोई नई अवधारणा नहीं है, लेकिन अब तक यह ज्यादातर कानूनी रूप से अनियमित था। अब, उत्तराखंड सरकार ने इसे एक विधायी ढांचे के तहत लाकर एक मिसाल पेश की है।
🔹 नए कानून के महत्वपूर्ण बिंदु
1️⃣ लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण
✅ प्रत्येक लिव-इन जोड़े को 30 दिनों के भीतर सरकारी रिकॉर्ड में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
✅ यदि कोई जोड़ा पंजीकरण नहीं कराता है, तो ₹25,000 तक का जुर्माना या 6 महीने तक की जेल हो सकती है।
✅ पंजीकरण से पहले यह सत्यापित किया जाएगा कि कोई भी साथी पहले से शादीशुदा नहीं है और दोनों पक्ष कानूनी रूप से सक्षम हैं।
2️⃣ पंजीकरण प्रक्रिया कैसे होगी?
✅ आधार-आधारित ओटीपी सत्यापन द्वारा पहचान की पुष्टि की जाएगी।
✅ एक निश्चित सरकारी पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना होगा।
✅ स्थानीय प्रशासन द्वारा संबंधित जोड़े को योग्यता प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा।
3️⃣ इस पंजीकरण से जोड़ों को क्या कानूनी लाभ मिलेंगे?
🔹 कानूनी मान्यता – यह पंजीकरण लिव-इन जोड़ों को कानूनी संरक्षण प्रदान करेगा।
🔹 महिलाओं की सुरक्षा – यदि कोई पुरुष अपने साथी को छोड़ देता है, तो महिला को कानूनी रूप से मुआवजा और सुरक्षा के अधिकार प्राप्त होंगे।
🔹 बच्चों के अधिकार – यदि किसी लिव-इन जोड़े से कोई बच्चा जन्म लेता है, तो उसे उत्तराधिकार और अन्य कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे।
🔹 संपत्ति और विरासत अधिकार – पंजीकृत जोड़ों को उनके संपत्ति विवादों में भी कानूनी लाभ मिल सकते हैं।
🔹 इस कानून के संभावित प्रभाव
✔ कानूनी सुरक्षा – इससे लिव-इन जोड़ों को अपनी पहचान छिपाने की जरूरत नहीं होगी और वे कानूनी रूप से सुरक्षित रहेंगे।
⚖ निजता बनाम सरकारी नियंत्रण – कुछ लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता पर प्रभाव डालने वाला नियम मान सकते हैं।
💬 सामाजिक स्वीकृति में वृद्धि – यह कानून लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक और कानूनी स्वीकृति देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
🚨 नकली रिश्तों पर रोकथाम – कई बार लिव-इन रिलेशनशिप का दुरुपयोग करके गलत मंशा से पार्टनर को धोखा दिया जाता है। अब, पंजीकरण अनिवार्य होने से ऐसी धोखाधड़ी को रोका जा सकेगा।
📜 संवैधानिक दृष्टिकोण – सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी लिव-इन रिलेशनशिप को भारतीय संविधान के तहत मान्यता दी थी, लेकिन अब यह उत्तराखंड में एक विधायी रूप से संगठित प्रक्रिया बन गई है।
🔹 क्या अन्य राज्यों को भी अपनाना चाहिए यह कानून?
उत्तराखंड का यह फैसला भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को नियमित करने की दिशा में पहला कदम है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अन्य राज्य भी इस कानून को लागू करेंगे या नहीं।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह लिव-इन जोड़ों के अधिकारों को सुरक्षित करेगा, जबकि कुछ का तर्क है कि यह सरकार द्वारा व्यक्तिगत जीवन में अधिक हस्तक्षेप है।
🔹 निष्कर्ष
✅ उत्तराखंड सरकार का यह निर्णय भारत में पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
✅ यह जोड़ों की सुरक्षा, महिलाओं के अधिकारों और धोखाधड़ी रोकथाम के लिए आवश्यक है।
✅ हालांकि, कुछ लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर असर डालने वाला कानून भी मान सकते हैं।
📢 आपका क्या विचार है?
क्या यह कानून पूरे भारत में लागू होना चाहिए? अपने विचार नीचे कमेंट में साझा करें! 💬
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