Skip to main content

आजादी के बाद दिल्ली

स्वतंत्रता के बाद दिल्ली का इतिहास (1947-2025)


15 अगस्त 1947 को भारत की आज़ादी के साथ ही दिल्ली देश की राजधानी बनी। इसके बाद दिल्ली ने राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कई महत्वपूर्ण बदलाव देखे।

India Gate and President House





स्वतंत्रता के बाद दिल्ली की प्रशासनिक स्थिति


1947 में स्वतंत्रता के बाद, दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory) के रूप में रखा गया। 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया, और इसके प्रशासन की जिम्मेदारी सीधे केंद्र सरकार को सौंप दी गई।

1989 में सरकारिया आयोग की सिफारिशों के बाद, 1991 में संविधान के 69वें संशोधन के जरिए दिल्ली को आंशिक राज्य का दर्जा मिला और इसे "राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT)" घोषित किया गया। इसके तहत दिल्ली की एक चुनी हुई विधानसभा और मुख्यमंत्री का प्रावधान किया गया, लेकिन कानून-व्यवस्था और भूमि प्रशासन केंद्र सरकार के अधीन रहे।




दिल्ली की राजनीतिक स्थिति (1947-2025)


1947-1990: कांग्रेस का दबदबा


1947 से 1990 तक दिल्ली की राजनीति पर कांग्रेस का प्रभाव रहा।

1952: दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें चौधरी ब्रह्म प्रकाश (कांग्रेस) दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने।

1956: दिल्ली से विधानसभा प्रणाली समाप्त कर इसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया।

1956-1991: दिल्ली में प्रशासक के रूप में उपराज्यपाल का शासन रहा।

Raiseena hills








1993-2013: विधानसभा की वापसी और भाजपा-कांग्रेस का प्रभाव


1991 में संविधान संशोधन के बाद 1993 में दिल्ली में पुनः विधानसभा चुनाव हुए।

1993: मदन लाल खुराना (भाजपा) दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने।

1998: शीला दीक्षित (कांग्रेस) ने सत्ता संभाली और 15 वर्षों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं (1998-2013)। उनके कार्यकाल में:

दिल्ली मेट्रो की शुरुआत (2002)

कॉमनवेल्थ गेम्स (2010) का आयोजन

फ्लाईओवर और सड़कों का विस्तार






2013-2025: आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय


2011 के अन्ना आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी (AAP) बनाई और दिल्ली की राजनीति में नई ऊर्जा लाई।

2013: AAP ने पहली बार चुनाव लड़ा और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने, लेकिन सरकार सिर्फ 49 दिनों में गिर गई।

2015: AAP ने 70 में से 67 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की।

2020: AAP ने फिर से भारी बहुमत (62/70 सीटें) से सरकार बनाई।

2024 लोकसभा चुनाव: दिल्ली की राजनीति में बदलाव संभव।





दिल्ली का बुनियादी ढांचा और विकास (1947-2025)


परिवहन और बुनियादी ढांचा


दिल्ली मेट्रो (2002): आज दिल्ली मेट्रो दुनिया की सबसे बड़ी मेट्रो नेटवर्क में से एक है।

इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा: भारत का सबसे व्यस्त हवाई अड्डा।

रिंग रोड और फ्लाईओवर: ट्रैफिक समस्या कम करने के लिए बड़े पैमाने पर सड़क निर्माण।


औद्योगीकरण और आर्थिक विकास


दिल्ली एक आईटी हब और स्टार्टअप केंद्र बन गया है।

कनॉट प्लेस, गुरुग्राम और नोएडा के साथ दिल्ली NCR भारत का आर्थिक केंद्र बन चुका है।


सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियाँ


वायु प्रदूषण: दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है।

जल संकट: यमुना नदी का प्रदूषण और भूमिगत जल की कमी।

अवैध बस्तियाँ और झुग्गियाँ: तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण समस्या।

Delhi Metro







प्रमुख घटनाएँ (1947-2025)


1947: भारत की आज़ादी और दिल्ली को राजधानी घोषित किया गया।

1984: इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे।

1991: दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) का दर्जा मिला।

2002: दिल्ली मेट्रो की शुरुआत।

2010: दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन।

2012: निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा पर बड़ा आंदोलन।

2014: लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा की बड़ी जीत।

2015: AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 67/70 सीटें जीतीं।

2020: AAP फिर से सरकार में आई।

2024: लोकसभा चुनाव, जिससे दिल्ली की राजनीति में नए बदलाव।








1947 से 2025 तक, दिल्ली ने भारतीय राजनीति और विकास के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। स्वतंत्रता के बाद यह शहर तेजी से एक आधुनिक, उच्च तकनीक और राजनीतिक रूप से सक्रिय राजधानी बना।आने वाले वर्षों में, दिल्ली का भविष्य कैसे आकार लेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।



Comments

Popular posts from this blog

एफआईआर (FIR) कैसे दर्ज करें

एफआईआर (FIR) कैसे दर्ज करें: स्टेप बाय स्टेप गाइड किसी भी अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराना एक महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार है। 1 जुलाई 2023 से भारतीय न्याय प्रणाली में बड़े बदलाव किए गए हैं और भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) को नए कानूनों से बदल दिया गया है। अब एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के तहत आती है। इस ब्लॉग में हम बताएंगे कि नए कानूनों के अनुसार एफआईआर कैसे दर्ज करें, क्या प्रक्रियाएं बदली हैं, और पुलिस के इनकार करने पर क्या करें। Supreme Court of India एफआईआर (FIR) क्या है? एफआईआर (First Information Report) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 173 के तहत दर्ज की जाती है। यह किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की पहली सूचना होती है, जिसे पुलिस दर्ज करके जांच शुरू करती है। एफआईआर दर्ज करने के लिए आवश्यक चीजें शिकायतकर्ता का नाम, पता और संपर्क नंबर घटना का सही समय, तारीख और स्थान घटना का संक्षिप्त विवरण यदि कोई गवाह हो त...

FIR से चार्जशीट तक: पुलिस जांच प्रक्रिया और नागरिकों के अधिकार

पुलिस जांच प्रक्रिया: आपके अधिकार और कर्तव्य  भारत में पुलिस की जांच प्रक्रिया अपराधों की जाँच और न्याय दिलाने का एक महत्वपूर्ण चरण है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) 2023 के तहत पुलिस की जांच प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इस लेख में हम पुलिस की जांच के विभिन्न चरणों, एफआईआर दर्ज करने से लेकर चार्जशीट दाखिल करने तक की प्रक्रिया को विस्तार से समझेंगे। साथ ही, नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य भी जानेंगे, ताकि हर व्यक्ति कानूनी रूप से जागरूक रह सके। पुलिस जांच प्रक्रिया के चरण 1. एफआईआर (First Information Report) दर्ज करना एफआईआर पुलिस जांच की पहली और महत्वपूर्ण कड़ी होती है। एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया: ✔️ पीड़ित या कोई अन्य व्यक्ति अपराध की जानकारी पुलिस को दे सकता है। ✔️ संज्ञेय अपराधों में पुलिस मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना एफआईआर दर्ज कर सकती है। ✔️ असंज्ञेय अपराधों में मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक होती है। ✔️ एफआईआर दर्ज होने के बाद उसकी एक प्रति पीड़ित को निःशुल्क दी जाती है। ➡...

कानूनी नोटिस मिलने पर क्या करें? जानिए सही कानूनी प्रक्रिया और समाधान

कानूनी नोटिस मिलने पर क्या करें? – संपूर्ण मार्गदर्शिका आज के डिजिटल और कानूनी रूप से जटिल युग में, कानूनी नोटिस (Legal Notice) मिलना एक आम बात हो गई है। व्यापारिक विवादों, व्यक्तिगत मामलों, संपत्ति संबंधी समस्याओं, उपभोक्ता अधिकारों या अनुबंध उल्लंघन के मामलों में कानूनी नोटिस भेजा जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि यदि आपको कोई कानूनी नोटिस मिले तो आपको क्या करना चाहिए? क्या इसे नजरअंदाज किया जा सकता है, या आपको तुरंत कोई कदम उठाना चाहिए? इस लेख में हम कानूनी नोटिस की प्रकृति, उसके प्रभाव, और उससे सही तरीके से निपटने के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। कानूनी नोटिस क्या होता है? कानूनी नोटिस एक औपचारिक पत्र होता है , जिसे आमतौर पर वकील के माध्यम से भेजा जाता है। इसमें कानूनी अधिकारों और कर्तव्यों का उल्लेख होता है और प्राप्तकर्ता को उचित समय के भीतर उत्तर देने की चेतावनी दी जाती है। भारत में कानूनी नोटिस भेजने के पीछे मुख्य उद्देश्य: विवाद को अदालत के बाहर सुलझाने का अवसर देना प्राप्तकर्ता को कानूनी कार्रवाई की संभावना से अवगत कराना सबूत के रूप में इस्तेमाल होने के लिए एक आ...