सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर स्तनपान का अधिकार
स्तनपान: एक मौलिक अधिकार, सामाजिक जिम्मेदारी और बच्चे का हक
स्तनपान केवल एक जैविक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक शिशु के पोषण, स्वास्थ्य और संपूर्ण विकास के लिए अनिवार्य है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जन्म के पहले छह महीनों तक नवजात को केवल माँ का दूध मिलना चाहिए, क्योंकि यह पोषण का सबसे अच्छा स्रोत है और शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर स्तनपान को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत शामिल किया है। यह फैसला न केवल माताओं के अधिकारों को सशक्त बनाता है, बल्कि समाज और सरकार को इस मुद्दे पर संवेदनशील होने के लिए बाध्य करता है।
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| Ai image : Breastfeeding mom |
भारत में स्तनपान की स्थिति और चुनौतियाँ
भारत में स्तनपान की स्थिति चिंताजनक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार –
- केवल 41% शिशु जन्म के पहले घंटे में स्तनपान प्राप्त कर पाते हैं।
- 52% माताएँ छह महीने तक विशेष रूप से स्तनपान नहीं करा पातीं।
- कई कार्यस्थलों पर स्तनपान के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इस विषय पर पर्याप्त जागरूकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से इन समस्याओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और प्रमुख बिंदु
मार्च 2025 में दिए गए इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि –
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स्तनपान माँ और बच्चे दोनों का मौलिक अधिकार है:
- माँ को अपने बच्चे को कहीं भी स्तनपान कराने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
- यह अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 15(3) (महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान) के अंतर्गत आता है।
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सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है:
- रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, मॉल, हवाई अड्डों, सरकारी कार्यालयों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान कक्ष अनिवार्य किए जाएँ।
- राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि सभी नई सार्वजनिक इमारतों में यह सुविधा दी जाए।
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| सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान |
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कार्यस्थलों पर स्तनपान के लिए अनुकूल वातावरण:
- महिला कर्मचारियों को स्तनपान के लिए ब्रेक लेने की अनुमति दी जाए।
- सभी सरकारी और निजी संस्थानों को ‘स्तनपान अनुकूल नीतियाँ’ अपनानी चाहिए।
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स्तनपान को सामाजिक रूप से स्वीकार्य बनाने की आवश्यकता:
- सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान कराने पर माताओं को शर्मिंदगी महसूस नहीं होनी चाहिए।
- समाज को जागरूक करने के लिए सरकार को विशेष अभियान चलाने चाहिए।
कानूनी और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में स्तनपान
कई देशों ने पहले ही स्तनपान को कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता दी है:
- यूनाइटेड किंगडम: 2010 के ‘Equality Act’ के तहत, कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान को पूरी सुरक्षा दी गई है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: 2010 के ‘Affordable Care Act’ में नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर स्तनपान के लिए सुविधाएं देने का प्रावधान है।
- ऑस्ट्रेलिया: वहाँ स्तनपान के अधिकारों की रक्षा करने वाले कठोर कानून हैं, और किसी भी प्रकार का भेदभाव अवैध माना जाता है।
भारत में, मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act, 1961) में महिलाओं को स्तनपान कराने के लिए कुछ प्रावधान दिए गए हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इन अधिकारों को और अधिक प्रभावी बनाएगा।
स्तनपान और आर्थिक प्रभाव
स्तनपान केवल माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद है। एक अध्ययन के अनुसार, यदि स्तनपान को व्यापक रूप से अपनाया जाए तो –
- स्वास्थ्य सेवा का खर्च कम होगा: स्तनपान से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे बीमारियों पर खर्च कम होता है।
- मातृत्व अवकाश की अवधि में वृद्धि की जा सकती है: जिससे माताओं को कार्यस्थल पर अधिक सहयोग मिलेगा और वे अधिक उत्पादक बन सकेंगी।
- कुपोषण और शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी: जिससे राष्ट्रीय विकास दर में सुधार होगा।
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| माताओं और बच्चों के अधिकार |
सरकार और समाज की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को प्रभावी बनाने के लिए सरकार और समाज दोनों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
सरकार को चाहिए कि –
- सभी सार्वजनिक स्थलों और कार्यस्थलों पर स्तनपान कक्ष अनिवार्य करें।
- महिलाओं को स्तनपान संबंधी उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करें।
- कार्यस्थलों पर स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए नए कानून बनाएँ।
समाज को चाहिए कि –
- स्तनपान को सामान्य प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करें।
- स्तनपान कराने वाली माताओं को संकोच महसूस न हो, इसका ध्यान रखें।
- महिलाओं की निजता का सम्मान करें और स्तनपान को समर्थन दें।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय स्तनपान को कानूनी और सामाजिक स्तर पर मजबूती प्रदान करता है। यह न केवल माताओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर उनकी सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करता है।
अब समय आ गया है कि समाज स्तनपान को लेकर अपनी रूढ़िवादी मानसिकता बदले और सरकार इसे सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए। स्तनपान केवल एक माँ का अधिकार नहीं, बल्कि एक बच्चे का हक भी है, और इसे सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से लागू करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
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