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भारत में संविधानिक विकास

भारत में संविधानिक विकास (1773 से 1947 तक) – एक विस्तृत

🔷 प्रस्तावना:

भारत में आधुनिक प्रशासनिक और संविधानिक व्यवस्था की नींव ब्रिटिश शासनकाल में रखी गई। 1773 से लेकर 1947 तक अनेक अधिनियमों और सुधारों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने भारत के शासन में समय-समय पर परिवर्तन किए। ये परिवर्तन प्रशासनिक केंद्रीकरण, विधायी सुधार, भारतीयों की भागीदारी और उत्तरदायी शासन की ओर क्रमिक यात्रा को दर्शाते हैं।


📜 संवैधानिक विकास का कालक्रम:


1. रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 (Regulating Act):

  • पहली बार ब्रिटिश संसद ने भारतीय मामलों में हस्तक्षेप किया।

  • बंगाल के गवर्नर को “गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल” बनाया गया (पहले: वॉरेन हेस्टिंग्स)।

  • कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (1774)।




2. पिट्स इंडिया एक्ट, 1784:

  • ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया।

  • दोहरी शासन व्यवस्था: बोर्ड ऑफ कंट्रोल + कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स


3. चार्टर एक्ट, 1793:

  • कंपनी के अधिकारों को 20 वर्षों तक बढ़ाया गया।

  • गवर्नर जनरल को निर्णायक मत का अधिकार दिया गया।


4. चार्टर एक्ट, 1813:

  • कंपनी का भारत में व्यापारिक एकाधिकार समाप्त (चाय और चीन को छोड़कर)।

  • मिशनरियों को धर्म प्रचार की अनुमति।

  • शिक्षा के लिए ₹1 लाख वार्षिक निधि।


5. चार्टर एक्ट, 1833:

  • कंपनी के सभी व्यापारिक कार्य समाप्त।

  • बंगाल के गवर्नर जनरल को अब कहा गया “गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया” (पहला: लॉर्ड विलियम बैंटिक)।

  • विधायी शक्तियाँ केवल केंद्र के पास।


6. चार्टर एक्ट, 1853:

  • कार्यकारी और विधायी कार्य पृथक हुए।

  • भारतीय सिविल सेवा (ICS) में खुली प्रतियोगी परीक्षा का सिद्धांत स्वीकार।

  • विधायी परिषद में अलग-अलग सदस्य जोड़े गए – भारत में प्रतिनिधित्व की शुरुआत।


🔥 1857 की क्रांति और उसके बाद के संवैधानिक बदलाव:

7. भारत शासन अधिनियम, 1858 (Government of India Act):

  • ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त।

  • भारत का शासन अब सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन।

  • गवर्नर जनरल को वायसराय का पद भी मिला (पहला: लॉर्ड कैनिंग)।

  • सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया की नियुक्ति हुई।


8. भारतीय परिषद अधिनियम, 1861:

  • विधायी कार्य में भारतीयों की सीमित भागीदारी की शुरुआत।

  • विधायी परिषद में गैर-सरकारी सदस्य जोड़े गए।

  • प्रांतों को विधायी शक्तियाँ देकर विकेन्द्रीकरण की शुरुआत


9. भारतीय परिषद अधिनियम, 1892:

  • विधायी परिषदों का विस्तार।

  • परिषदों में प्रश्न पूछने और बजट पर चर्चा की सीमित अनुमति।

  • गैर-सरकारी सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से शुरू हुआ (नामांकन प्रणाली)।


10. भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 (मॉर्ले-मिंटो सुधार):

  • मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचिका की व्यवस्था — सांप्रदायिक आधार पर प्रतिनिधित्व की शुरुआत।

  • केंद्रीय और प्रांतीय विधायी परिषदों का विस्तार।

  • परिषदों में प्रस्ताव पारित करने की सीमित शक्ति।


11. भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार):

  • द्वैध शासन (Dyarchy) की व्यवस्था प्रांतीय स्तर पर लागू:

    • "रक्षित" विषय – ब्रिटिश अफसरों के पास (जैसे – पुलिस, राजस्व)।

    • "हस्तांतरित" विषय – भारतीय मंत्रियों को (जैसे – शिक्षा, स्वास्थ्य)।



  • केंद्रीय और प्रांतीय विधानमंडलों का और विस्तार

  • प्रथम बार भारत में द्विसदनीय व्यवस्थापिका (Bicameral Legislature) – केंद्रीय स्तर पर:

    • काउंसिल ऑफ स्टेट (उच्च सदन)

    • लेजिस्लेटिव असेम्बली (निम्न सदन)


12. साइमन कमीशन, 1927:

  • भारत के भविष्य के संवैधानिक सुधारों पर विचार के लिए कमीशन भेजा गया।

  • सभी सदस्य अंग्रेज थे – इसका पूरे देश में बहिष्कार हुआ।


13. गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conferences), 1930-32:

  • भारतीय नेताओं को भारत के भविष्य पर चर्चा के लिए लंदन बुलाया गया।

  • गांधी-इरविन समझौता (1931) के बाद गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए।


14. भारत सरकार अधिनियम, 1935 (Government of India Act):

यह भारत का अब तक का सबसे व्यापक संविधानिक दस्तावेज था।

  • संघीय शासन (Federal Government) की व्यवस्था (परंतु लागू नहीं हो सका)।

  • प्रांतों में स्वायत्तता (Autonomy) दी गई – द्वैध शासन समाप्त।

  • केंद्र और प्रांतों में विषयों के लिए तीन सूची (Union, Provincial, Concurrent)

  • प्रांतीय द्विसदनीय विधायिका की व्यवस्था कुछ प्रांतों में।

  • फेडरल कोर्ट की स्थापना (1937)।


15. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 (Indian Independence Act):

  • भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्र डोमिनियन के रूप में स्थापित किया गया।

  • ब्रिटिश संसद की भारत पर संप्रभुता समाप्त।

  • संविधान सभा को भारत का संविधान बनाने का पूर्ण अधिकार मिला।

  • 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।


✍️ निष्कर्ष (Conclusion):

1773 से 1947 तक भारत में संविधानिक विकास की यात्रा एक व्यापक परिवर्तनशील प्रक्रिया रही, जिसमें भारतीयों की भागीदारी, प्रशासनिक केंद्रीकरण, फिर विकेंद्रीकरण और अंततः स्वतंत्रता की ओर अग्रसरता दिखती है। यह प्रक्रिया भारतीय राष्ट्र-राज्य की नींव रखने वाली थी, जिसने आगे चलकर 26 जनवरी 1950 को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में भारत के संविधान को जन्म दिया।


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