परिचय
भारत के लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सर्वोपरि माना जाता है। लेकिन जब सवाल आता है जजों की नियुक्ति का, तब दो प्रणालियाँ — Collegium प्रणाली और NJAC (National Judicial Appointments Commission) — के बीच गहरी बहस छिड़ जाती है।
आइए जानते हैं कि Collegium और NJAC में क्या फर्क है, इन दोनों के बीच विवाद का क्या कारण रहा, और आज इस मुद्दे की प्रासंगिकता क्या है।
📜 Collegium प्रणाली क्या है?
Collegium प्रणाली भारत में जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण की एक परंपरा है, जो पूर्णतः न्यायपालिका द्वारा नियंत्रित होती है।
यह प्रणाली तीन ऐतिहासिक फैसलों (Three Judges Cases) के माध्यम से विकसित हुई थी।
✨ मुख्य विशेषताएँ:
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प्रधान न्यायाधीश (CJI) और चार वरिष्ठतम सुप्रीम कोर्ट जज मिलकर नियुक्ति का निर्णय लेते हैं।
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केंद्र सरकार केवल सुझाव स्वीकार या लौटा सकती है, लेकिन अंतिम निर्णय Collegium का होता है।
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पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव कई बार आलोचना का कारण बना।
🏛️ NJAC क्या था?
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) एक वैकल्पिक ढांचा था जिसे संविधान के 99वें संशोधन और NJAC अधिनियम, 2014 के माध्यम से लाया गया था।
इसका मकसद जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और लोकतांत्रिक बनाना था।
✨ NJAC के सदस्य:
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भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI)
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सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश
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केंद्रीय कानून मंत्री
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दो प्रतिष्ठित व्यक्ति (प्रधानमंत्री, CJI और विपक्ष के नेता द्वारा चुने गए)
⚡ Collegium बनाम NJAC: मुख्य अंतर
| बिंदु | Collegium प्रणाली | NJAC |
|---|---|---|
| नियंत्रण | पूरी तरह न्यायपालिका के हाथ में | न्यायपालिका + कार्यपालिका + नागरिक समाज |
| पारदर्शिता | बेहद गोपनीय प्रक्रिया | अपेक्षाकृत खुली प्रक्रिया |
| उत्तरदायित्व | न्यायपालिका केवल खुद के प्रति जवाबदेह | संसद और कार्यपालिका के प्रति आंशिक जवाबदेही |
| स्थापना | सुप्रीम कोर्ट के फैसलों द्वारा | संविधान संशोधन द्वारा (बाद में रद्द) |
🛡️ NJAC क्यों खारिज हुआ? — सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
मुख्य तर्क थे:
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न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आघात।
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कार्यपालिका की अत्यधिक दखल से निष्पक्षता पर खतरा।
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अनुच्छेद 50 के तहत न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग रखने का सिद्धांत।
नतीजा: Collegium प्रणाली बहाल हो गई, हालांकि कोर्ट ने खुद भी स्वीकार किया कि इसमें सुधार की आवश्यकता है।
🧠 समस्या के मूल कारण: Collegium और NJAC दोनों की चुनौतियाँ
Collegium की आलोचनाएँ:
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गोपनीयता, भाई-भतीजावाद के आरोप
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मेरिट और विविधता की कमी
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पारदर्शी मूल्यांकन तंत्र का अभाव
NJAC के खतरे:
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राजनीतिक हस्तक्षेप का बढ़ता जोखिम
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न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमजोर पड़ सकती थी
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नागरिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल
📈 आज की स्थिति: भविष्य की राह
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सुप्रीम कोर्ट Collegium प्रणाली के सुधार (Reforms) के लिए प्रतिबद्ध है, जैसे नियुक्तियों के लिए विस्तृत कारणों का उल्लेख।
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सरकार और न्यायपालिका के बीच लगातार संवाद हो रहा है, लेकिन NJAC जैसा पूर्ण ढांचा वापस लाने की कोई तात्कालिक संभावना नहीं दिखती।
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"Transparency and Accountability within Collegium" पर भी कई सुझाव और रिपोर्ट आ चुके हैं, जैसे कि:
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Collegium की सिफारिशों का प्रकाशन
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प्रदर्शन आधारित मूल्यांकन प्रणाली
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क्षेत्रीय और सामाजिक प्रतिनिधित्व में संतुलन
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✨ आपका मत?
आपके अनुसार भारत में जजों की नियुक्ति के लिए कौन-सी प्रणाली बेहतर हो सकती है — एक पूर्ण न्यायिक मॉडल, एक लोकतांत्रिक भागीदारी वाला मॉडल या कोई नया मिश्रित ढांचा?
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