सुप्रीम कोर्ट की नई गाइडलाइंस: वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति प्रक्रिया में बड़ा बदलाव
🔹 पृष्ठभूमि: इंदिरा जयसिंह बनाम भारत सरकार मामला
भारत में वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 16 के अंतर्गत की जाती है। यह धारा सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों को सक्षम बनाती है कि वे किसी अधिवक्ता को उसकी कानूनी योग्यता, ख्याति या विशेष ज्ञान/अनुभव के आधार पर "वरिष्ठ अधिवक्ता" का दर्जा दे सकें।
वर्ष 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने "इंदिरा जयसिंह बनाम भारत सरकार" केस में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए 100 अंकों पर आधारित मूल्यांकन प्रणाली लागू की थी। इसके अंतर्गत निम्नलिखित मानदंड थे:
-
अधिवक्ता के अनुभव के वर्ष
-
न्यायालयों के निर्णयों में योगदान
-
कानूनी लेखन व प्रकाशन
-
नि:शुल्क सेवा (Pro bono)
-
इंटरव्यू
वर्ष 2023 में इसमें कुछ संशोधन किए गए थे, लेकिन अब 2025 की नई गाइडलाइंस से इस पूरी प्रणाली को ही समाप्त कर दिया गया है।
🔹 2025 की नई गाइडलाइंस: मुख्य बिंदु
1. अंकों की प्रणाली समाप्त
सुप्रीम कोर्ट ने अब अंकों के आधार पर मूल्यांकन प्रणाली (100-पॉइंट स्केल) को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। न्यायालय का मानना है कि वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति केवल अंकों या संख्या पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि समग्र योग्यता के आधार पर होनी चाहिए।
2. पूर्ण न्यायालय (Full Court) द्वारा निर्णय
अब वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति का निर्णय सुप्रीम कोर्ट या संबंधित उच्च न्यायालय के Full Court द्वारा लिया जाएगा। इस निर्णय में सभी स्थायी न्यायाधीश शामिल होंगे।
3. मतदान और सर्वसम्मति
कोर्ट ने सुझाव दिया है कि फुल कोर्ट में सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाए। यदि ऐसा संभव न हो तो मतदान (voting) के माध्यम से निर्णय लिया जा सकता है। ज़रूरत पड़ने पर गुप्त मतदान (secret ballot) भी किया जा सकता है।
4. योग्यता की शर्तें यथावत
वरिष्ठ अधिवक्ता बनने के लिए न्यूनतम 10 वर्षों का अभ्यास पहले की तरह अनिवार्य रहेगा। अधिवक्ता स्वयं आवेदन कर सकते हैं, और अदालतें भी स्वतः संज्ञान (suo motu) लेकर किसी योग्य अधिवक्ता को यह सम्मान दे सकती हैं।
5. हर वर्ष नियुक्ति प्रक्रिया
नई गाइडलाइंस के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक बार वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्ति की प्रक्रिया अनिवार्य रूप से की जाएगी, ताकि सभी योग्य अधिवक्ताओं को अवसर मिल सके।
6. विविधता और समावेशन पर ज़ोर
सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालतों में प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं को भी इस प्रक्रिया में सम्मिलित करने की बात कही है, जिससे विविधता (diversity) और क्षेत्रीय संतुलन बना रहे।
7. अंतरिम प्रावधान
जो आवेदन पिछली प्रणाली के तहत प्रक्रियाधीन हैं, उन्हें उसी प्रक्रिया के अनुसार पूरा किया जाएगा। लेकिन नए आवेदन तब तक स्वीकार नहीं किए जाएंगे, जब तक नई नियमावली लागू न हो जाए। उच्च न्यायालयों को 4 महीनों के भीतर नई गाइडलाइंस के अनुरूप नियम बनाने के निर्देश दिए गए हैं।
🔹 इन परिवर्तनों का महत्व
सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई यह पहल भारत की न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता, निष्पक्षता और समावेशिता को बढ़ावा देती है। इससे वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति अब केवल "निजी संपर्क या प्रतिष्ठा" के आधार पर नहीं, बल्कि वास्तविक योग्यता और अनुभव के आधार पर होगी।
नई गाइडलाइंस से यह भी सुनिश्चित होगा कि जमीनी स्तर पर कार्यरत, प्रतिभाशाली अधिवक्ताओं को भी यह सम्मान मिले, जिससे न्यायिक क्षेत्र में समरसता और समानता को बढ़ावा मिलेगा।
📌 निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की ये नई गाइडलाइंस वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक उचित, पारदर्शी और प्रतिनिधित्वकारी बनाती हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि देश के सभी उच्च न्यायालय किस प्रकार इन नए मानकों को अपनाते हैं और उन्हें किस प्रकार लागू करते हैं।
टैग्स: #वरिष्ठ_अधिवक्ता #SupremeCourt #AdvocatesAct #IndianJudiciary #LawUpdates #LegalReforms #HighCourt #LawNews

.jpg)
Comments
Post a Comment