परिचय:
भारतीय संविधान विश्व के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है। इसकी एक प्रमुख विशेषता मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) हैं, जो नागरिकों को जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से जीने का अधिकार प्रदान करते हैं। ये अधिकार संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) में उल्लिखित हैं और लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को मजबूत करते हैं। इन्हें भारत के नागरिकों के लिए "जीवन की संजीवनी" कहा जा सकता है।
मौलिक अधिकारों की विशेषताएं:
-
संविधान द्वारा प्रदत्त: मौलिक अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए हैं, अतः ये विधायिका या कार्यपालिका द्वारा मनमाने ढंग से नहीं छीने जा सकते।
-
न्यायालय द्वारा संरक्षित: यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
-
कुछ अधिकार नागरिकों के लिए विशेष: जैसे कि कुछ अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त हैं, जबकि अन्य सभी व्यक्तियों (नागरिक और गैर-नागरिक दोनों) को प्राप्त हैं।
-
सीमाओं के अधीन: मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं; राज्य सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता आदि के आधार पर इनमें यथोचित सीमाएं लगाई जा सकती हैं।
मौलिक अधिकारों के प्रकार:
भारतीय संविधान ने मूलतः 7 मौलिक अधिकार प्रदान किए थे, लेकिन अब ये 6 हैं क्योंकि मौलिक अधिकार के रूप में संपत्ति का अधिकार (Right to Property) को हटा दिया गया है और इसे एक कानूनी अधिकार बना दिया गया है (44वें संशोधन, 1978 के तहत)। वर्तमान में निम्नलिखित 6 मौलिक अधिकार प्रभावी हैं:
1. समानता का अधिकार (Right to Equality) – अनुच्छेद 14 से 18
यह अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि:
-
सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं।
-
धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
-
समान अवसर की गारंटी दी जाएगी (विशेषतः सरकारी नौकरियों में)।
-
अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है।
-
उपाधियों (Titles) का उन्मूलन किया गया है, सिवाय सैन्य या शैक्षिक सम्मानों के।
उदाहरण: आरक्षण की व्यवस्था संविधान की धारा 15 और 16 के तहत समानता के अधिकार की व्याख्या के रूप में की गई है।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19 से 22
इस अधिकार के अंतर्गत नागरिकों को कई प्रकार की स्वतंत्रताएं प्राप्त हैं:
-
अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने, शांतिपूर्वक एकत्र होने, कहीं भी आने-जाने और किसी भी व्यवसाय को अपनाने की स्वतंत्रता।
-
अनुच्छेद 20: अपराधों से संबंधित सुरक्षा जैसे कि दोहरी सजा से बचाव, आत्मदोषारोपण से रक्षा।
-
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
-
अनुच्छेद 21A: 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
-
अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी और निरोध के मामलों में सुरक्षा।
विशेष बात: अनुच्छेद 21 के अंतर्गत 'जीवन' का अर्थ केवल शारीरिक अस्तित्व नहीं, बल्कि गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation) – अनुच्छेद 23 और 24
यह अधिकार समाज में होने वाले शोषण के विरुद्ध सुरक्षा देता है:
-
अनुच्छेद 23: मानव तस्करी, बलात् श्रम (Beggar) और अन्य समान शोषण पर प्रतिबंध।
-
अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी खतरनाक उद्योग या फैक्ट्री में काम कराने पर प्रतिबंध।
उदाहरण: बाल मजदूरी पर प्रतिबंध इसी अधिकार के अंतर्गत आता है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) – अनुच्छेद 25 से 28
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, और यह अधिकार नागरिकों को निम्नलिखित सुनिश्चित करता है:
-
अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता, उसे मानने, प्रचार करने और अभ्यास की स्वतंत्रता।
-
अनुच्छेद 26: धार्मिक संस्थाओं को चलाने और प्रबंधित करने की स्वतंत्रता।
-
अनुच्छेद 27: किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने के लिए कर नहीं लगाया जा सकता।
-
अनुच्छेद 28: धार्मिक शिक्षण से संबंधित प्रावधान – सरकारी वित्तपोषित संस्थानों में धार्मिक शिक्षा पर प्रतिबंध।
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational Rights) – अनुच्छेद 29 और 30
यह अधिकार विशेष रूप से अल्पसंख्यकों (Minorities) को उनकी संस्कृति, भाषा और शिक्षा की रक्षा के लिए दिए गए हैं:
-
अनुच्छेद 29: किसी भी नागरिक को अपनी संस्कृति, भाषा या लिपि को संरक्षित रखने का अधिकार।
-
अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को अपनी शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार।
उदाहरण: मिशनरी स्कूल, मदरसे, या गुरुकुल इन अधिकारों के तहत आते हैं।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) – अनुच्छेद 32
इस अधिकार को संविधान का "हृदय और आत्मा" (Heart and Soul) कहा गया है – डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार। इसके अंतर्गत यदि किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो वह सीधे:
-
सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) या
-
उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) में रिट याचिका दाखिल कर सकता है।
प्रमुख रिट्स (Writs):
-
Habeas Corpus
-
Mandamus
-
Prohibition
-
Certiorari
-
Quo-Warranto
निष्कर्ष:
मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र की आत्मा हैं। ये नागरिकों को ना केवल गरिमा के साथ जीवन जीने की स्वतंत्रता देते हैं, बल्कि राज्य के अत्याचारों से सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। इन अधिकारों की रक्षा और पालन केवल न्यायपालिका या राज्य की ही नहीं, अपितु हर नागरिक की जिम्मेदारी है। आज जब देश विकास की ओर अग्रसर है, तब इन अधिकारों का महत्व और भी बढ़ जाता है।

Comments
Post a Comment