Skip to main content

Posts

सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर स्तनपान का अधिकार स्तनपान: एक मौलिक अधिकार, सामाजिक जिम्मेदारी और बच्चे का हक स्तनपान केवल एक जैविक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक शिशु के पोषण, स्वास्थ्य और संपूर्ण विकास के लिए अनिवार्य है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जन्म के पहले छह महीनों तक नवजात को केवल माँ का दूध मिलना चाहिए, क्योंकि यह पोषण का सबसे अच्छा स्रोत है और शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर स्तनपान को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत शामिल किया है। यह फैसला न केवल माताओं के अधिकारों को सशक्त बनाता है, बल्कि समाज और सरकार को इस मुद्दे पर संवेदनशील होने के लिए बाध्य करता है। Ai image : Breastfeeding mom भारत में स्तनपान की स्थिति और चुनौतियाँ भारत में स्तनपान की स्थिति चिंताजनक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार – केवल 41% शिशु जन्म के पहले घंटे में स्तनपान...

ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) – प्रभावी रणनीति और उत्तीर्ण होने का निश्चित तरीका

ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE)  For Representation  ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) एक महत्वपूर्ण परीक्षा है, जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा आयोजित किया जाता है। यह परीक्षा उन कानून स्नातकों के लिए अनिवार्य है जो भारत में वकालत करना चाहते हैं। हालांकि, यह एक ओपन-बुक परीक्षा है, लेकिन इसमें सफलता पाने के लिए रणनीतिक अध्ययन और सही दृष्टिकोण आवश्यक है। इस गाइड में शामिल हैं: परीक्षा का स्वरूप और विषयों का महत्व सफलता के लिए सर्वोत्तम अध्ययन योजना प्रभावी संसाधन और किताबों की सूची उत्तर लेखन और समय प्रबंधन रणनीति आवश्यक अंतिम संशोधन और परीक्षा दिवस की रणनीति 1. AIBE परीक्षा का स्वरूप और महत्वपूर्ण विषय परीक्षा संरचना परीक्षा मोड: ऑफलाइन (पेन और पेपर आधारित) प्रश्न प्रकार: बहुविकल्पीय (MCQs) कुल प्रश्न: 100 अधिकतम अंक: 100 समय सीमा: 3 घंटे 30 मिनट नकारात्मक अंकन: नहीं परीक्षा भाषा: हिंदी, अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में उपलब्ध योग्यता अंक: 40% (SC/ST) | 45% (GEN/OBC) महत्वपूर्ण विषय और उनकी प्राथमिकता कुछ विषय परीक्षा में उच्च महत्व रखते ह...

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025: सुधार और दूरगामी प्रभाव

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 भारत में कानूनी परिदृश्य अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 की शुरुआत के साथ एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के लिए तैयार है। यह प्रस्तावित कानून जवाबदेही, नियामक पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, साथ ही भारत की कानूनी प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने का प्रयास करता है। जैसे-जैसे यह विधेयक विधायी चर्चा से गुजरेगा, कानूनी पेशेवरों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए इसकी प्रमुख धाराओं और संभावित प्रभावों का विश्लेषण करना आवश्यक है।

संविधान की प्रस्तावना कैसे न्याय, स्वतंत्रता और समानता को परिभाषित करती है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना: एक विस्तृत अध्ययन परिचय भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) न केवल संविधान का परिचय कराती है, बल्कि यह भारत की संवैधानिक भावना और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है। इसे संविधान की आत्मा (Soul of the Constitution) भी कहा जाता है। यह प्रस्तावना हमारे संविधान की नींव है और नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों की दिशा तय करती है। प्रस्तावना का अर्थ (Meaning of Preamble in Hindi) "प्रस्तावना" का अर्थ होता है – किसी भी दस्तावेज़ या ग्रंथ की भूमिका या परिचय। भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान की मुख्य विचारधारा को संक्षेप में प्रस्तुत करती है और बताती है कि यह संविधान किन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बनाया गया है। संविधान की प्रस्तावना निम्नलिखित मूलभूत तत्वों पर आधारित है: संप्रभुता (Sovereignty) – भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है और किसी भी बाहरी शक्ति से प्रभावित नहीं होता। समाजवाद (Socialism) – समाज में समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया जाता है। धर्मनिरपेक्षता (Secularism) – भारत में सभी धर्मों को समान रूप से देखा ...

आजादी के बाद दिल्ली

स्वतंत्रता के बाद दिल्ली का इतिहास (1947-2025) 15 अगस्त 1947 को भारत की आज़ादी के साथ ही दिल्ली देश की राजधानी बनी। इसके बाद दिल्ली ने राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कई महत्वपूर्ण बदलाव देखे। India Gate and President House

भारत में आरटीआई कैसे दाखिल करें:

भारत में आरटीआई (सूचना का अधिकार) कैसे दाखिल करें: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 भारत के नागरिकों को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। इसके तहत, कोई भी व्यक्ति सरकारी विभागों से आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकता है। आरटीआई आवेदन करने की प्रक्रिया 1. उपयुक्त विभाग की पहचान करें जिस विषय पर जानकारी चाहिए, उससे जुड़े सरकारी विभाग को पहचाने। सही विभाग में आवेदन भेजने से प्रक्रिया तेज़ और प्रभावी होगी। 2. आरटीआई आवेदन तैयार करें आप अपने आवेदन को हिंदी, अंग्रेजी या राज्य की आधिकारिक भाषा में लिख सकते हैं। आवेदन में निम्नलिखित विवरण सम्मिलित करें: संबंधित जनसूचना अधिकारी (PIO) का नाम एवं विभाग आवेदक का नाम, पता एवं संपर्क विवरण अनुरोधित जानकारी का स्पष्ट विवरण आवेदन शुल्क संबंधी जानकारी 3. आवेदन शुल्क का भुगतान करें आरटीआई आवेदन के साथ 10 रुपये का शुल्क देना आवश्यक है। भुगतान के विभिन्न तरीके: नकद (विभागीय कार्यालय में) डिमांड ड्राफ्ट (DD) पोस्टल ऑर्डर ऑनलाइन भुगतान (यदि संबंधित विभाग यह सुविधा प्रदान करता है) 4. ...

मौलिक अधिकार बनाम राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत: एक संतुलित दृष्टिकोण

  मौलिक अधिकार बनाम राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत: एक संतुलित दृष्टिकोण भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत दो महत्वपूर्ण घटक हैं, जो नागरिकों के अधिकारों और राज्य की नीतिगत दिशा को परिभाषित करते हैं। मौलिक अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखते हैं, जबकि नीति निर्देशक सिद्धांत समाज के समग्र विकास और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए राज्य को दिशा प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकार: नागरिकों के संरक्षक मौलिक अधिकार संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35) में उल्लिखित हैं। ये कानूनी रूप से प्रवर्तनीय होते हैं, यानी नागरिक इन अधिकारों के उल्लंघन पर न्यायालय की शरण ले सकते हैं। मौलिक अधिकारों की मुख्य विशेषताएँ: संवैधानिक गारंटी : ये अधिकार नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं और राज्य की शक्ति को सीमित करते हैं। न्यायिक प्रवर्तनीयता : अनुच्छेद 32 और 226 के तहत नागरिक उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं। कुछ अधिकार नागरिकों तक सीमित, कुछ सभी के लिए : उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 19 केवल नागरिकों के लिए है, जबकि अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों पर ला...